छत्तीसगढ़ में कृषि विकास के निर्धारक

 

डा (श्रीमती अनुसुइया बघेल1, गिरधर साहू2

1भूगोल अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय,रायपुर

2शोध छात्र, भूगोल अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय,रायपुर

ब्वततमेचवदकपदह ।नजीवत म्.उंपसरू 

 

शोध सारांश

प्रस्तुत शोध पत्र का उद्देश्य छत्तीसगढ़ राज्य में कृषि विकास के स्तर को ज्ञात करना एवं उसको प्रभावित करने वाले जनाकिकीय, आर्थिक एवं समाजिक कारकांे की व्याख्या है। यह अध्ययन कृषि सांख्यिकी 2011-12 एवं कृषि संगणना 2011-12 पर आधारित है। प्रस्तुत अध्ययन का आधार राज्य के 27 जिले हंै। कृषि विकास का स्तर ज्ञात करने हेतु कृषि से सम्बंधित 9 घटकांे का चयन किया गया है। 1. निरा फसली क्षेत्र का प्रतिशत 2. सिंचित क्षेत्र का प्रतिशत 3. द्विफसली क्षेत्र का प्रतिशत 4. रबी फसल का प्रतिशत 5. रासायनिक खाद का उपयोग 6. प्रमाणिक बीजो का उपयोग 7. पौध संरक्षण यंत्रो की संख्या 8. टेªक्टर की संख्या एवं 9 प्रति हे. फसलों का उत्पादन। इन 9 घटकांे को उस घटक के माध्यिका से प्रतिशत ज्ञात किया गया है। प्रत्येक जिले में सभी  9 घटकों के इस प्रतिशत का औसत ज्ञात किया गया है। तत्पश्चात इस औसत से सभी नौ घटकांे का सहसंबंध ज्ञात किया गया है। 9 घटकांे के इस प्रतिशत को घटक विशेष के सहसंबंध से भार प्रदान किया गया है। इस भार का औसत ज्ञात कर संयुक्त सूचकांक ज्ञात किया गया है जो संबंधित जिले में कृषि के विकास के स्तर को व्यक्त करता है। छत्तीसगढ़ में कृषि विकास के स्तर का संयुक्त सूचकांक सबसे अधिक धमतरी जिले मे 647.7 और सबसे कम दन्तेवाडा जिले में 21.4 है। छत्तीसगढ़ को कृषि विकास के इस संयुक्त सूचकांक के आधार पर चार वर्गो में उच्च, मध्यम, निम्न एवं अति निम्न कृषि विकास के स्तर में बाँटा गया हैं। उच्च कृषि विकास के क्षेत्र मंे 9 जिले धमतरी, गरियाबंद, रायपुर, महासमुंद, बलौदाबाजार, बेमेतरा, बालोद एवं कबीरधाम शामिल हंै जहां संयुक्त सूचकांक 200 से अधिक है। इन क्षेत्रों में सम धरातल, उपजाऊ मिट्टी, सिचाई सुविधा एवं यातायात के साधन उपलब्ध है। इसके विपरीत अति निम्न कृषि विकास के क्षेत्र मंे 7 जिले बस्तर, कोन्डागांव, नारायणपुर, दन्तेवाडा, सुकमा, बीजापुर, एवं जशपुर शामिल हंै जहाँ संयुक्त सूचकांक 50 से भी कम है। ये क्षेत्र विषम धरातल , घने वन एवं अपक्षालित मिट्टी के क्षेत्र है जहांँ यातायात के साधनों की कमी है।

 

शब्द संक्षेप- माध्यिका, सूचकांक, विकास, द्विफसली, प्रमाणिक।

 

 

 

प्रस्तावना -

भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश की अधिकांश जनसंख्या प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से कृषि से ही रोजगार प्राप्त करती है। अतः कृषि यहाँ की अर्थव्यवस्था की धुरी है। कृषि सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्राथमिक व्यवसाय है जो मानव और उसके वातावरण के बीच कड़ी का कार्य करता है। मानव सभ्यता के विकास में कृषि महत्वपूर्ण संदर्भ बिन्दु रहा है। विकास जैसे सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास की कड़ी में कृषि का योगदान महत्वपूर्ण रहा है (दुबे, 2014) वर्तमान समय में कृषि भूगोल में कृषि विकास का अध्ययन ध्यान आकर्षित किया हुआ है। भूगोलवेत्ताओं के द्वारा कृषि विकास के स्तर एवं कृषि विकास के दर में प्रादेशिक भिन्नता की पहचान, व्याख्या और विश्लेषण किया जाता है (जाधव, 1997) कृषि प्रणाली एवं प्रक्रियाओं को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक एवं निर्धारक तत्व एक दूसरे से संबंधित होते हैं। किसी स्थान की कृषि पर उस स्थान विशेश की भौतिक एवं आर्थिक - सांस्कृतिक तत्वों का स्पष्ट प्रभाव पाया जाता है। जिसका मानव अपनी क्षमता एवं आवश्यकता अनुसार विकासोन्मुख दिशा की ओर संशोधन करता है।

 

सिंह एवं ढिल्लन (1994) के अनुसार कृषि विकास की प्रकृति बहुविमीय है यह अनेक अन्योनाश्रित पारिस्थितिकीय चरों की प्रक्रिया है जो कृषि विकास के स्तरों को प्रभावित करती हैं ये सभी तत्व सामाजिक एवं प्रादेशिक मापक पर अत्यधिक परिवर्तनशील है ये सभी तत्व साथ-साथ संक्रिया करते हैं तथा कृषि विकास पर इनमें से किसी एक तत्व का प्रभाव दूसरे तत्वों के प्रभाव पर निर्भर करता है अग्रवाल (1983) के अनुसार कृषि विकास के स्तर में गुणात्मक और संख्यात्मक सूचक दोनों ही शामिल हैं जोत के आकार में वृद्धि से निर्विष्ठियाँ (प्दचनज) जैसे भूमि, जल, बीज, उर्वरक और तकनीकी तथा निर्गम (व्नजचनज) जैसे फसल के उत्पादन में वृद्धि होती है अर्थात् कृषि विकास के स्तर से तात्पर्य किसी क्षेत्र के कृषि में निर्विष्ठियाँ तथा निर्गम की मात्रा में विस्तार से है

 

कृषि विकास से तात्पर्य कृषि नवाचार के अंगीकरण से है जिसमंे कृषि मंे प्रयुक्त पराम्परागत उपकरणांे एवं विधियांे के स्थान पर नवीन तकनीकांे के उपयोग शामिल हैं। कृषि नावाचार के अंगीकरण में भिन्नता स्थान विशेश की सामाजिक एवं आथर््िाक परिस्थितियांे का प्रतिफल होती है। कृषि में नवाचार के विस्तार में पर्यावरण, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, जनांकीकिय एवं आर्थिक दशाएँ, तकनीकी परिवर्तन को प्रभावित करती है। इन कारकांे के कारण कृषि नवाचार के अभिग्रहण में क्षेत्रीय विषमता पाई जाती है (इस्लाम, 2015) अध्ययन में कृषि विकास के स्तर को ज्ञात करने के लिए रासायनिक खाद, प्रमाणिक बीजों का उपयोग, कीटनाशी का उपयोग, आधुनिक कृषि उपकरणांे का उपयोग, सिंचाई सुविधा, द्विफसली क्षेत्र, रबी क्षेत्र, निरा फसली क्षेत्र एवं प्रति हे. उत्पादन को शामिल किया गया हंै। अग्रवाल (1970) ने बस्तर जिले में कृषि दक्षता ज्ञात करने के लिए फसल सुरक्षा (सिंचाई) तथा भूमि उपयोग गहनता (द्विफसली) को महत्वपूर्ण कारक के रूप में माना है शर्मा (1974) ने कृषि संभाव्यता (दक्षता) ज्ञात करने के लिए सिंचाई और द्विफसली क्षेत्र को सूचक के रूप में माना है

 

अध्ययन के उद्देश्य (व्इरमबजपअमे) -

प्रस्तुत अध्ययन के निम्नलिखित उद्देश्य हैंः-

1.     छत्तीसगढ़ मंे कृषि विकास के स्तर को ज्ञात करना

2.     छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों मंे कृषि विकास में भिन्नता की व्याख्या करना

3.     कृषि विकास को प्रभावित करने वाले जनांकिकीय, आर्थिक एवं सामाजिक कारकों की व्याख्या करना है।

 

अध्ययन क्षेत्र -

छत्तीसगढ़ राज्य (170-46‘ से 240 6‘ उत्तर अक्षांश तथा 800 15‘ से 840 24‘ पूर्व देशांश) 1,35,198 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है। 2011 की जनगणना के अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य की कुल जनसंख्या 2,53,40,196 है। छत्तीसगढ़ में जनसंख्या का घनत्व 189 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। राज्य की 76.8 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में निवास करती तथा राज्य मे 71.4 प्रतिशत जनसंख्या साक्षर है।

 

आँकडो के स्रोत एवं विधितंत्र (ैवनतबमे िकंजं ंदक डमजीवकवसवहल) -

प्रस्तुत अध्ययन कृषि सांख्यिकी 2011-12 एवं कृषि संगणना 2011-12 पर आधारित है। छत्तीसगढ़ में कृषि विकास के स्तर को ज्ञात करने के लिए 9 घटकों का चयन किया गया है। 1. निरा फसली क्षेत्र का प्रतिशत 2. निरा फसली क्षेत्र मंे सिंचाई का प्रतिशत 3. कुल फसली क्षेत्र मंे द्विफसली क्षेत्र का प्रतिशत 4. कुल फसली क्षेत्र मंे रबी फसल का प्रतिशत 5. प्रति हे. फसली क्षेत्र मंे रासायनिक खाद का उपयोग(कि.ग्रा.) 6. प्रमाणिक बीजों का उपयोग करने वाले किसानांे का प्रतिशत 7 प्रति हजार हे. निरा फसली क्षेत्र पर पौध संरक्षण यंत्रों का संख्या 8. प्रति 100 हे. निरा फसली क्षेत्र पर ट्रेक्टर की संख्या 9. प्रति हे. उत्पादन (मि. टन) प्रमाणिक बीज एवं रासायनिक खाद के आँकडे कृषि संगणना तथा शेष कृषि सांख्यिकी पर आधारित है। कृषि विकास के निर्धारक एवं जोत के आकार के अनुसार घटकों का विशलेषण कृषि संगणना पर आधारित है। प्रदेश के सभी 27 जिलों में चयनित घटक माध्यिका के प्रतिशत के रूप में परिवर्तित किया गया हैं।

100

 प्पर त्र             ग्पर

        ग्1 डकदण्

 

प्पर   त्र जिले में घटक का प्रारंभिक मूल्य (प्दपजपंस टंसनम)

ग्पर   त्र जिले में घटक का वास्तविक मूल्य (।इेवसनजम टंसनम)

ग्1 डकदण् त्र घटक का माध्यिका मूल्य (डमकपंउ टंसनम)

 

तत्पश्चात प्रत्येक जिले के सभी घटकों के माध्यिका के प्रतिशत का औसत ज्ञात किया गया हैै इस औसत मूल्य से प्रत्येक घटक के माध्यिका के प्रतिशत का कार्लपियर्सन सहसंबंध ज्ञात किया गया है। औसत मूल्य के साथ प्रत्येक घटक के सहसंबध मूल्य से प्रत्येक जिले के प्रत्येक घटक के माध्यिका के प्रतिशत को भार प्रदान किया गया हैं। प्रत्येक जिले के सभी घटकों के भार का योग कर सहसंबंध के योग से विभाजित कर संयुक्त सूचकांक (ब्वउचवेपजम प्दकमग) ज्ञात किया गया है।

Σ प्पर

प्बरत्र

Σतप

प्बर त्र जिले का संयुक्त सूचकांक (ब्वउचवेपजम प्दकमग)

प्पर त्र जिले की भारित मूल्य (ूमपहीजमक टंसनम)

तप त्र सहसंबंध गुणांक (प्रारंभिक सूचकांक और प्रारंभिक सूचकांक के माध्य के बीच) (ठमजूममद प्दपजपंस टंसनम ंदक डमंद िप्दपजपंस टंसनम)

त्र प्रारंभिक सूचकांक की संख्या (छवण् िप्दपजपंस टंसनम)

 

यही औसत मूल्य उस जिले के कृषि विकास के स्तर को स्पष्ट करता है। कृषि विकास स्तर को ज्ञात करने के लिए सार्थक सहसंबंध वाले घटकों का चयन किया गया है।

 

कृषि विकास के घटक (ब्वउचवदमदजे ि।हतपबनसजनतंस क्मअमसवचउमदज) -

प्रस्तुत अध्ययन में छत्तीसगढ़ में कृषि विकास का स्तर ज्ञात करने हेतु कृषि से सम्बंधित 9 घटकांे निरा फसली क्षेत्र का प्रतिशत, सिंचित क्षेत्र का प्रतिशत, द्विफसली क्षेत्र का प्रतिशत, रबी फसल का प्रतिशत , रासायनिक खाद का उपयोग , प्रमाणिक बीजो का उपयोग , पौध संरक्षण यंत्रो की संख्या ,टेªक्टर की संख्या एवं प्रति हे. फसलों का उत्पादन का चयन किया गया है।

 

1.निरा फसली क्षेत्र (छमज ेवूद ंतमं) -

पृष्ठ के कुल क्षेत्र का कृषि में प्रयुक्त भूमि निरा फसली क्षेत्र मंे शामिल होता है। जोत के आकार में वृद्वि के साथ निरा फसली क्षेत्र में कमी हुई है छत्तीसगढ़ में सीमांत जोत में 97.2 प्रतिशत तथा वृहत जोतों में 95.7 प्रतिशत निरा फसली क्षेत्र है। कृषि के विकास का निरा फसली क्षेत्र से सीधा संबंध होता है। छत्तीसगढ़ मंे निरा फसली क्षेत्र और कृषि विकास के स्तर में धनात्मक सहसंबध ($.95) पाया गया है। निरा फसाली क्षेत्र सबसे अधिक बेमेतरा जिले (78.6) मंे है। इसके विपरीत बीजापुर जिले मंे यह मात्र 28.8 है। यही कारण है कि बेमेतरा जिले में कृषि विकास का स्तर उच्च और बीजापुर मे अति न्यून पाया गया है। प्रदेश में निरा फसली क्षेत्र का माध्यिका मूल्य 50.5 तथा विचरण गुणांक 398.5 है।

 

2.सिंचाई (प्ततपहंजपवद)-

कृषि का विकास सिंचाई के बिना कल्पना नहीं की जा सकती है। सिंचाई के साथ रासायनिक खाद का उपयोग फसलों के उत्पादकता में वृद्धि के लिए त्वरित साधन है (सिंह, राहाजा एवं बापट, 1970) जोत के आकार के अनुसार सिचाई के प्रतिशत मंे अन्तर पाया जाता है। छत्तीसगढ़ में सीमान्त एवं लघु जोत में सिचाई का प्रतिशत कम और वृहद जोत में अपेक्षाकृत अधिक है। एक से अधिक बार सिचिंत भूमि सीमांत (10.11) एवं लघु जोत (9.3) में अपेक्षाकृत अधिक और वृहत जोत (5.8) मंे कम है। छत्तीसगढ में निरा फसली क्षेत्र का 30.0 क्षेत्र सिंचित है। रायपुर (82), धमतरी एवं जांजगीर चापा (78) जिले में 75 से अधिक निरा फसल क्षेत्र सिंचित हैै। इसके विपरीत दन्तेवाडा और नारायणपुर जिले में सिंचित भूमि नहीं हैं। सुकमा (1), बस्तर (3), कोन्डागाॅव, बीजापुर एवं जशपुर (4) जिलांे में सिंचित भूमि 5 से भी कम है। कृषि के विकास एवं सिंचित भूमि में धनात्मक सहसंबंध ($.84) पाया गया है। प्रदेश में सिंचित भूमि का माध्यिका मूल्य 21 एवं विचरण गुणांक 107.4 प्रतिशत है।

 

3.द्विफसली क्षेत्र (क्वनइसम ब्तवचचमक ।तमं)-

द्विफसली क्षेत्र कृषि विकास का सर्वोत्तम सूचक है। द्विफसली क्षेत्र मिट्टी के प्रकार तथा सिंचाई पर निर्भर करता है। छत्तीसगढ़ में निरा फसली क्षेत्र का 21.1 प्रतिशत क्षेत्र द्विफसली है। छत्तीसगढ़ में जोत के आकार में वृद्वि के साथ द्विफसली क्षेत्र का प्रतिशत कम हो गया है। छत्तीसगढ़ में द्विफसली क्षेत्र सीमांत जोत में 10.1 प्रतिशत है जो वृहत जोत में घटकर 5.8 प्रतिशत है छत्तीसगढ़ में द्विफसली क्षेत्र मंुगेली (62.9) तथा धमतरी जिले (56.9) में 55 प्रतिशत से अधिक है। इसके विपरीत जशपुर (0.1), सुकमा (1), नारायणपुर (1.3), बस्तर (3) एवं कोंण्डागांव जिले (4.7) में द्विफसली क्षेत्र 5 प्रतिशत से भी कम है। प्रदेश में कृषि के विकास तथा द्विफसली क्षेत्र में धनात्मक सहसंबंध ($.76) पाया गया है। प्रदेश में द्विफसली क्षेत्र का माध्यिका मूल्य 14.9 एवं विचरण गुणांक 112.7 प्रतिशत है।

 

4.रबी फसल (त्ंइप ब्तवचे)-

रबी फसल सिंचाई सुविधाआंे तथा मिट्टी के प्रकार पर निर्भर करता है। छत्तीसगढ़ मंे कुल फसली क्षेत्र का 19.3 प्रतिशत रबी फसल के अन्तर्गत है। रबी फसल का प्रतिशत मुंगेली (43.7) और बेमेतरा (41.6) जिले में 40 प्रतिशत से अधिक हैं। इसके विपरीत नारायणपुर (1.2),सुकमा (1.3), दन्तेवाडा (1.7), बीजापुर (2.0), बस्तर (3.2) एवं कोण्डागाँव जिले (4.6) मंे 5 प्रतिशत से भी कम है। प्रदेश में कृषि से विकास एवं रबी फसल के प्रतिशत मंे धनात्मक सहसंबंध ($.70) पाया गया है। प्रदेश में रबी फसल का माध्यिका मूल्य 14.3 प्रतिशत एवं विचरण गुणांक 137.2 प्रतिशत है।

 

5.रासायनिक खाद (थ्मतजपसप्रमत)-

आधुनिक कृषि उर्वरकों के बिना सम्भव नहीं है। फसलों के उत्पादन, मृदा शक्ति को पुनः प्राप्त करने एवं सुरक्षित रखने के लिए उर्वरको का निरंतर उपयोग किया जाता है। कृषि में हरित क्रांति के परिणाम स्वरूप लगभग प्रत्येक जोत के कृषक उर्वरकों का उपयोग करते हंै। उन्नत बीज तथा रासायनिक खाद कृषि उत्पादकता को प्रभावित करने वाले कारकों में प्रमुख हैं। प्रति हे. अधिक उपज के लिए रासायनिक खाद का उपयोग आवश्यक है रासायनिक खाद के उपयोग के लिए पानी पर्याप्त होना चाहिए। अन्यथा फसल पीला पड़ जाता है। आधुनिक कृषि में समय के अनुसार उपयुक्त एवं पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होती है। रायायनिक उर्वरक कृषि उत्पादकता एवं कृषि विकास को प्रत्येक्ष रूप से प्रभावित करता है। रासायनिक उर्वरकों की उपयोगिता स्वयं अनेक कारकों द्वारा प्रयुक्त होती है( जैन, 1988)

 

छत्तीसगढ़ में प्रति हे. रासायनिक खाद का उपयोेग 38.13 कि.ग्रा. है। रासायनिक खाद के अन्र्तगत डी..पी. 30.6 प्रतिशत , युरिया 54 प्रतिशत, सल्फर 0.01 प्रतिशत और अमोनिया सल्फेट 15.5 प्रतिशत हैं। रासायनिक खाद का उपयोग असिंचित भूमि मंे अपेक्षाकृत कम है। जोत के आकार में वृद्वि के साथ रासायनिक खाद के उपयोग में कमी हुई है। सीमांत एवं लद्यु जोत में क्रमशः 71.1 प्रतिशत एवं 71.6 प्रतिशत क्षेत्र में रासायनिक खाद का उपयोग हुआ है जबकि वृहत जोत में यह 59.3 प्रतिशत है। रासायनिक खाद का उपयोग धमतरी (84.78 कि.ग्रा.) और जांजगीर चांपा जिले में (71.8 कि.ग्रा.) मे 70 कि.ग्रा. प्रति हे. से अधिक है। जबकि दन्तेवाडा, सुकमा एवं बीजापुर (1.86कि.ग्रा.), बस्तर कोण्डागांव, नारायणपुर (8.82कि.ग्रा.) और जशपुर जिले (18.7 कि.ग्रा.)में रासायनिक खाद का उपयोग 10 किलोग्राम प्रति हे. से भी कम है। प्रदेश में रासायनिक खाद और कृषि विकास के स्तर में धनात्मक सहसंबंध ($.68) पाया गया है। प्रदेश में रासायनिक खाद का माध्यिका मूल्य 30.98 कि.ग्रा. और विचरण गुणांक 406.3 प्रतिशत है।

6.प्रमाणिक बीज (ब्मतजपपिमक ैममके)-

उन्नत बीज के उपयोग से कृषि उत्पादन में आशातीत वृद्धि की जा सकती है उन्नत बीजों के द्वारा ही फसलों की उत्पादकता में अधिकतम वृद्धि हुई है। कृषकों तक इन बीजों को पहुँचाने के लिए सरकार द्वारा अनेक कार्यक्रमों का अयोजन किया जाता है जिसके परिणाम स्वरूप कृषकांे के नवाचार संबंधी अंगीकरण की प्रक्रिया द्वारा उनके सामाजिक स्वरूप में काफी परिवर्तन हुआ है। प्रमाणिक बीज से प्रति हे. उपज अधिक होता है क्योंकि प्रमाणिक बीजों से सौ प्रतिशत अंकुरण की संभावना होती है। किन्तु उन्नत बीजों के उपयोग से फसलों में बीमारियों का प्रकोप भी अधिक होता है। साथ ही सिंचाई की अधिक आवश्यकता होती है। छत्तीसगढ़ में मात्र 19.7 प्रतिशत कृषक प्रमाणिक बीजों का उपयोग कर पाते है। सर्वाधिक प्रमाणिक बीजों का उपयोग करने वाले कृषक धमतरी जिले में 48.2 प्रतिशत तथा दन्तेवाडा एवं सुकमा (0.1), कोण्डागांव (1.4), बीजापुर (2.2), कवर्धा (3.1) एवं जांजगीर चांपा 6 जिलों में (4.5) 5 प्रतिशत से भी कम कृषक प्रामाणिक बीजों का उपयोग करते हंै। प्रदेश में प्रमाणिक बीजों के उपयोग करने वाले कृषकों का माध्यिका मूल्य 15.1 प्रतिशत है। प्रदेश में उन्नत बीजों के उपयोग करने वाले कृषक एवं कृषि विकास सूचकांक में धनात्मक सहसंबंध ($.56) एवं विचलन गुणांक 132 प्रतिशत है।

 

प्रमाणिक बीज के तीन प्रकार ठतमंकमत ैममकए थ्वनदकंजपवद ेममक और प्रमाणिक बीज 1(ब्मतजपपिमक ब्1) एवं प्रमाणिक बीज2 (ब्मतजपपिमक ब्2) हैं। प्रमाणिक बीजांेे का उपयोग सीमांत एवं लघु जोत की तुलना में वृहत कृषक अधिक करते हैं। प्रमाणिक बीज खरीदने का मुख्य स्रोत कृषि विभाग (37.3), बीज काॅरपोरेशन (66.3) एवं काॅरपोरेशन फेड(7.6) है। प्रामाणिक बीजों (ब्लू टेग) का उपयोग सीमांत जोत में 3.3 प्रतिशत और वृहत जोत में 4.8 प्रतिशत कृषक करते है।

7.पौध संरक्षण (च्मेज ब्वदजतवस)-

पौधों को विभिन्न बीमारियों से बचाने के लिए पौध संरक्षण अति आवश्यक है। कीटनाशी और बीमारियाँ पौधों को नुकसान पहुँचाते हैं रासायनिक कीटनाशकों से मिट्टी तथा पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है यही कारण है कि रासायनिक कीटनाशकों को प्रतिबंधित कर दिया गया है इसके स्थान पर कीटनाशी के लिए जैविक, यांत्रिक और सांस्कृतिक विधियों को अपनाने तथा जैव कीटनाशकों के उपयोग को प्रोत्साहन दिया जा रहा है छत्तीसगढ़ में पौध संरक्षण यंत्रों की संख्या प्रति 1000 हे. निरा फसली क्षेत्र पर 53 है। प्रदेश में पौध संरक्षण यंत्रों की संख्या का माध्यिका मूल्य 12 एवं विचरण गुणांक 403 प्रतिशत है। यह संख्या सबसे अधिक धमतरी जिले में 361 प्रति 1000 हे. निरा फसली क्षेत्र है। धमतरी जिले (361), रायपुर (164), बलौदाबाजार (122),गरियाबंद (113), कवर्धा (109), महासमुंद (106) और बेमेतरा (103) सात जिलों में प्रति हजार निरा फसली क्षेत्र पर पौध संरक्षण यंत्र 100 से अधिक है। जबकि नारायणपुर, कांकेर,दन्तेवाडा,सुकमा, बीजापुर, सरगुजा, बलरामपुर, कोरिया, एवं जशपुर 9 जिलों में पौध संरक्षण यंत्र नहीं है। कबीरधाम (.01), बस्तर (1), कोरबा और सरगुजा जिलों (04) में यह संख्या 5 से भी कम है। पौध संरक्षण यंत्र तथा कृषि विकास मंे धनात्मक सहसंबंध ($.87) पाया गया है।

 

कीटनाशी दवाइयों का उपयोग प्रायः जोत के सभी आकार मंे समान है। इसके उपयोग के बिना उत्पादन मिलना कठिन है। वृहत कृषक की आर्थिक स्थिति अच्छी होने के कारण कीटनाशी का उपायोग अधिक करते हैं। कीटनाशी की सामान्य विधि में आर्थिक एवं सांस्कृतिक विधि, यांत्रिकीय विधि, जैविक विधि एवं रासायनिक विधि प्रमुख हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

सारणी 1: माध्यिका मूल्य एवं प्रसरण गुणांक

क्र्र.   सूचक माध्यिका    प्रसरण गुणांक      मध्यिका से प्रतिशत

                           न्यूनतम     अधिकतम

1      निरा फसली क्षेत्र का प्रतिशत     50ण्5  113ण्9 57ण्0  155ण्6

2      निरा फसली क्षेत्र मंे सिंचाई का प्रतिशत      21ण्0  107ण्4 4ण्8   371ण्4

3      कुल फसली क्षेत्र मंे द्विफसली क्षेत्र का प्रतिशत     14ण्9  112ण्7 0ण्7       422ण्1

4      कुल फसली क्षेत्र मंे रबी फसल का प्रतिशत   14ण्3  137ण्2 8ण्4   305ण्6

5      प्रति हे. फसली क्षेत्र मंे रासायनिक खाद का उपयोग( कि.ग्रा. )   30ण्9       406ण्3 6ण्0   273ण्7

6      प्रमाणिक बीजों का उपयोग करने वाले किसानों का प्रतिशत 15ण्1  132ण्0       0ण्60  100ण्0

7      प्रति हजार हे. निरा फसली क्षेत्र पर पौध संरक्षण यंत्रों का संख्या   12ण्0       403ण्0 0ण्8   3000ण्8

8      प्रति 100 हे. निरा फसली क्षेत्र पर ट्रेक्टर की संख्या   11ण्0  63ण्6  18ण्2       227ण्3

9      प्रति हे. उत्पादन (मिट्रिक टन)   1ण्22  75ण्6  77ण्0  172ण्1

स्रोत- कषि सांख्यिकी एवं कृषि संगणना, 2011-12

 

 

8.कृषि उपकरण (।हतपबनसजनतंस डंबीपदमतल)-

यंत्रीकरण का तात्पर्य विस्तृत रूप में हस्तचलित, पशुचलित एवं शक्तिचलित यंत्रों के विकसित रूप से है। ट्रेक्टर कृषि यंत्रो मंे प्रमुख है। कृषि संबंधी अधिकांश कार्य ट्रेक्टर के माध्यम से किया जाता है। टेªक्टर के उपयोग से कृषि में हल एव बैलो का महत्व समाप्ति की ओर है। ट्रेक्टर के उपयोग से भारी मिट्टियों पर खेती करना सरल हो गया है इससे धन तथा समय की भी बचत होती है। आ़द्युनिक कृषि उपकरण का उपयोग कृषि को सरल बनानेे के लिए अति आवश्यक है। किन्तु इसका उपयोग बडे जोत वाले संपन्न कृषक ही कर पाते हैं। कृषि उपकरणों में डीजल पंप, टेªक्टर, हारवेस्टर, थ्रेसर, इत्यादि हैं। किन्तु प्रस्तुत अध्ययन में प्रति 100 हे. निरा फसली क्षेत्र पर ट्रेक्टर की संख्या को शामिल किया गया है। छत्तीसगढ़ में प्रति 100 हे. निरा फसली क्षेत्र पर ट्रेक्टर की संख्या 12 हैै एवं माध्यिका मूल्य 11 है। ट्रेक्टर की संख्या धमतरी (25), रायपुर (22), और दुर्ग(20) जिले मंे 20 से अधिक है। जबकि दन्तेवाडा एवं सुकमा (2), बस्तर, बीजापुर एवं जशपुर जिलों (05) में यह संख्या पांच से कम है। कृषि विकास सूचकांक और प्रति 100 हे. निरा फसली क्षेत्र पर ट्रेक्टर की संख्या में धनात्मक सहसंबंध ($.63) पाया गया है। ट्रेक्टर की संख्या में विचरण गुणांक 63.6 प्रतिशत हैं।

 

कृषि उपकरण हस्तचालित, पशुचालित एवं शक्तिचालित तीनों होते हंै। हस्तचालित में भ्ंदक ेममक कतपसस ,उडावनी पंखा, पैर से चलने वाला थ्रेसर, स्पे्र/डस्टर, भ्ंदक ीवम , एवं पशुचालित मे रीपर, लकडी के हल प्रमुख हंै। शक्ति चालित उपकरण में स्प्रे/डस्टर /डीजल पंप , ट्रेक्टर, हारवेस्टर प्रमुख हंै। हस्तचालित उपकरण प्रति100 हे. निरा फसली क्षेत्र पर सीमंात जोत (142.2) और लघु जोत (45.8) में अधिक है, जबकि बृहत कृषकांे मे यह मात्र 0.4 है। पशुचालित उपकरण में सीमान्त जोत में प्रति 100 हे. निरा फसली क्षेत्र पर 204 है जबकि बृहत कृषक में यह 62 प्रति 100 हे. निरा फसली क्षेत्र है। चूकि छोटे कृषकों को कम दर पर कृषि उपकरण की सुविधा शासन की ओर से मिलती है। यही कारण है कि सीमान्त जोत में कृषि मंे प्रयुक्त टेªक्टर की संख्या 4.1 प्रति 100 हे. निरा फसली क्षेत्र है जबकि वृहत जोतों मंे यह 0.3 है।

 

9.उत्पादन (च्तवकनबजपवद)-

प्रति इकाई उत्पादन ही कृषि विकास को दर्शाता है। सभी फसलों के उत्पादन को शामिल किया जाता है। कृषि विकास बहुविमीय विचारधारा है जिसमें फसल उत्पादन को रखा गया है सामान्यतया फसल उत्पादन फसलों की उत्पादन की मात्रा से लेते हैं लेकिन इसका अर्थ उत्पादन के प्रकार एवं गुणों से भी है फसल उत्पादकता का सामान्य अर्थ विभिन्न फसलों के प्रति हेक्टेयर उत्पादन से है (गोपाल कृष्णनन, 1992) छत्तीसगढ में प्रति हे. 1.34 मि. टन फसलांे का उत्पादन होता है। प्रदेश मंें प्रति हे. फसलों के उत्पादन का माध्यिका मूल्य 1.22 मि. टन और विचरण गुणांक 75.6 प्रतिशत है। जांजगीर चांपा (2.41), धमतरी (2.1),बिलासपुर (1.6) और दुर्ग (1.53), मंुगेली (1.49), बेमेतरा(1.48) और बालोद (1.45) सात जिलांे में प्रति हे. उत्पादन 1.40 मि. टन से अधिक है जबकि यह नारायणपुर (0.94), बस्तर और दन्तेवाडा (0.98) जिलों में एक मि. टन से भी कम है।

 

कृषि विकास का स्थानिक प्रतिरूप (ैचंजपंस च्ंजजमतद ि।हतपबनसजनतंस क्मअमसवचउमदज)-

कृषि विकास से तात्पर्य केवल उत्पादन वृद्धि से ही नहीं हंै, यह कृषि के सम्पूर्ण अंगों के विकास से सम्बंधित है। कृषि विकास से तात्पर्य नई परिस्थितियों के अनुसार कृषि के अंगीकरण में परिवर्तन से है कृषि विकास से तात्पर्य फसल उत्पादन में वृद्धि के लिए नई तकनीकों के उपयोग से ही नहीं है बल्कि संरचनात्मक आधार में परिवर्तन से भी है (मिश्रा, 1968) छत्तीसगढ़ में कृषि विकास का संयुक्त सूचकांक ;बवउचवेपजम पदकमगद्ध दन्तेवाडा जिले में न्यूनतम 21.4 एवं अधिकतम 647.7 धमतरी जिले में पाया गया है। छत्तीसगढ़ के 27 जिलों मंे कृषि विकास के संयुक्त सूचकांक में अंतर पाया गया है। प्रदेश के जिलों में संयुक्त सूचकांक (मानचित्र क्र 1) के आधार पर छत्तीसगढ़ को चार वर्गो मंे रखा जा सकता है।

 

1.उच्च कृषि विकास स्तर के क्षेत्र (।तमंे िभ्पही स्मअमस ि।हतपबनसजनतंस क्मअमसवचउमदज)-

छत्तीसगढ़ में उच्च कृषि विकास के क्षेत्र में उन जिलांे को शामिल किया गया है जिनमें संयुक्त सूचकांक 200 से अधिक है। छत्तीसगढ के 9 जिलांे मंे कृषि विकास का स्तर उच्च अर्थात् संयुक्त सूचकांक 200 से अधिक है। ये जिले धमतरी (647.7), रायपुर (349.4), बेमेतरा ( 291.7), बलौदाबाजार (275.9), गरियाबंद (245.6), बालोद (245.2), कबीरधाम (241.2), महासमुद (238.4) और दुर्ग (210.2) जिले हैं। प्रदेश के उच्च कृषि विकास के क्षेत्र प्रदेश के मध्यवर्ती मैदानी क्षेत्र है जहाँ समतल धरातल, उपजाऊ मिट्टी, सिंचाई के साधन, यातायात के साधन उपलब्ध हंै। यही कारण है कि इन क्षेत्रों में निरा फसली क्षेत्र 61 प्रतिशत से अधिक है। निरा फसली क्षेत्र बेमेतरा जिले मंे सर्वाधिक 78.6 प्रतिशत है। बलौदाबजार, महासमुद, धमतरी, दुर्ग, बालोद एवं कबीरधाम जिले में निरा फसली क्षेत्र 60 से 70 प्रतिशत है। इस वर्ग में केवल गरियाबंद जिले में निरा फसली क्षेत्र 50 प्रतिशत से कम है। उच्च कृषि विकास के इन क्षेत्रों में सिंचित भूमि 35 प्रतिशत से अधिक है। रायपुर (82), धमतरी (78) एवं दुर्ग जिले (61) में सिंचाई 60 प्रतिशत से अधिक है। इस वर्ग में राजनादगांव (21) और कबीरधाम (30) जिले मंे सिंचित भूमि 30 प्रतिशत से कम है। प्रदेश के उच्च कृषि विकास के इन क्षेत्रांे मंे द्विफसली क्षेत्र का प्रतिशत अपेक्षाकृत अधिक है। धमतरी जिले मंे द्विफसली क्षेत्र सर्वाधिक 56.9 है। रायपुर (15.6) और महासमुद्र जिले (17.5) में द्विफसली क्षेत्र 20 प्रतिशत से कम है।

 

प्रदेश में उच्च कृषि विकास के इन क्षेत्रांे में सिंचाई सुविधाओं का विकास हुआ है। अतः इन क्षेत्रों में रबी फसलांे का लेना संभव हुआ है। रबी फसलों का सर्वाधिक प्रतिशत बेमेतरा तहसील में 41.6 प्रतिशत है। गरियाबंद (14.9) और महासमुंद (10.2) जिलों मंे रबी फसलों का प्रतिशत 15 से भी कम है। प्रति हे. अधिक उत्पादन के लिए रासायनिक खाद का उपयोेग आवश्यक हो गया है। किन्तु यह सिंचाई की सुविधा होने पर ही संभव है। इस उच्च कृषि विकास के क्षेत्र में प्रति हे. रासायनिक खाद का उपयोग सर्वाधिक हुआ है। धमतरी जिले में सर्वाधिक रासायनिक खाद का उपयोग प्रति हे. 84.8 कि.ग्रा हुआ है। इन क्षेत्रांे में केवल राजनांदगांव (36.5 कि.ग्रा.) और कबीरधाम जिले (30.2 कि.ग्रा.) में रासायनिक खाद का उपयोग अपेक्षाकृत कम है। इन क्षेत्रों में 20 प्रतिशत से अधिक किसान प्रमाणिक बीजों का उपयोग करते हंै। धमतरी जिले में 40 प्रतिशत से भी अधिक किसान प्रमाणिक बीजों का उपयोग करते है। इन क्षेत्रो में केवल राजनांदगांव और कबीरधाम जिलों में प्रमाणिक बीजो का उपयोग करने वाले कृषक 40 प्रतिशत से कम है। पौध सरक्षण यंत्र की संख्या प्रति 1000 हे.निरा फसली क्षेत्र पर निकाला गया है। इस उच्च कृषि विकास के क्षेत्र में पौध संरक्षण यंत्रो की संख्या प्रति 1000 हे. निरा फसली क्षेत्र पर 100 से अधिक है। किन्तु बालोद (60) राजनांदगांव (42) और दुर्ग जिले (39) में यह 70 से कम है।

 

आधुनिक कृषि उन्नत कृषि उपकरण पर निर्भर करता है। छत्तीसगढ़ में उच्च कृषि विकास के क्षेत्रांे में शामिल 9 जिलों मंे से 6 जिलांे में प्रति 100 हे. निरा फसली क्षेत्र पर टेªक्टर की संख्या 12 से अधिक है। धमतरी और रायपुर जिले में यह संख्या क्रमशः 25 और 22 है। इस वर्ग में सम्मिलित राजनांदगांव (12), कबीरधाम (11) और गरियाबंद (10) जिले में प्रति 100 हे. फसली क्षेत्र पर टेªक्टर की संख्या 12 से कम है। प्रति इकाई उत्पादन कृषि विकास को इंगित करता है उच्च कृषि विकास के इस क्षेत्र में प्रति हे. फसलों का उत्पादन 1.30 मि. टन से भी अधिक है। धमतरी (2.1) दुर्ग (1.53), बेमेतरा (1.48), बालोद(1.45), राजनांदगांव (1.29) और महासमुंद जिले में प्रति हे. उत्पादन 1.30 मि. टन से अधिक है। बालोद, गरियाबंद और कबीरधाम जिले में प्रति इकाई उत्पादन 1.0 मि. टन से कम है। सारांश मंे, प्रदेश के मध्यवर्ती उच्च कृषि विकास के क्षेत्रों में कृषि विकास के सभी घटकों का उपयोग अधिक हुआ है।

 

2.मघ्यम कृषि विकास स्तर के क्षेत्र (।तमंे िडमकपनउ स्मअमस ि।हतपबनसजनतंस क्मअमसवचउमदज)

 छत्तीसगढ मंे मध्यम कृषि विकास के स्तर के अन्तर्गत वे जिले सम्मिलित हंै जिनमंे कृषि विकास सूचकांक 100 से 200 है। इन क्षेत्रों में मुंगेली (201.7), जांजगीर चांपा(185.5), राजनांदगांव (153.9), बिलासपुर (138.0) एवं रायगढ़ (126.0) 5 जिले सम्मिलित हंै। इसमंे से राजनांदगांव को छोड सभी जिले उच्च कृषि विकास के क्षेत्र के उत्तर अर्थात महानदी के उत्तर के मैदानी क्षेत्र है जबकि राजनांदगांव राज्य के पश्चिमी भाग में स्थित है। राजनांदगांव जिले के पश्चिमी भाग मैकल श्रेणी तथा दक्षिणी भाग दुर्ग उच्च भूमि के अन्तर्गत आता है। इन क्षेत्रों में मुंगेली (77.5)एवं जांजगीर-चांपा (70.3) जिले में निरा फसली क्षेत्र 70 प्रतिशत से अधिक है। किन्तु शेष चार जिले में यह 55 प्रतिशत से कम हैं। उल्लेखनीय है कि जांजगीर-चांपा (78) बिलासपुुर (44) एवं मुंगेली(47) जिले मंे सिंचाई 40 प्रतिशत से अधिक है। किन्तु राजनांदगांव (21) और रायगढ़ जिलों (23) में यह प्रतिशत 20 से भी कम है। द्विफसली क्षेत्र में मुंगेली जिले (62.9) का प्रथम स्थान है जबकि शेष पांच जिले में द्विफसली क्षेत्र 20 से 25 प्रतिशत है। रायगढ जिले में यह प्रतिशत मात्र 11.4 प्रतिशत है। किन्तु यह सिंचाई खरीफ फसलों के लिए ही उपलब्ध है। रबी फसलों का प्रतिशत मुंगेली जिले मंे सर्वाधिक 43.7 प्रतिशत है। शेष जिलों में भी यह प्रतिशत औसत से अधिक हैंे। केवल रायगढ जिले में यह प्रतिशत मात्र 10.4 है।

 

प्रति हेक्टेयर रासायनिक खाद का उपयोग मघ्यम कृषि विकास के इन क्षेत्रों मंे जांजगीर-चांपा जिले में सर्वाधिक 71.8 कि.ग्रा. है। शेष जिलों में यह 40 कि.ग्रा. से अधिक है। केवल राजनांदगांव जिले में यह औसत से कम 36.5 कि.ग्रा. है। रायगढ़ जिले में रासायनिक खाद का उपयोग प्रति हे. (60कि.ग्रा.) अधिक है। उल्लेखनीय है कि मध्यम कृषि विकास के 5 जिलों में प्रमाणिक बीजांे का उपयोग करने वाले कृषक 10 प्रतिशत से भंी कम है। केवल रायगढ़ जिले में यह प्रतिशत 40 है। पौध संरक्षण यंत्र की संख्या मध्यम कृषि विकास के जिलों मंे राज्य के औसत से काफी कम है। राजनांदगांव जिले में यह संख्या प्रति 1000 हे. निरा फसली क्षेत्र पर 42 है जबकि रायगढ जिले में यह मात्र 12 है। इन क्षेत्रों में प्रति 100 हे. निरा फसली क्षेत्र पर टेªक्टर की संख्या राज्य के औसत के समान है। केवल जांजगीर चांपा (16) जिले मंे यह संख्या अपेक्षाकृत अधिक है। प्रति हे. उत्पादन मध्यम कृषि विकास के इन जिलांे में राज्य के औसत उपज 1.24 मि.टन से अधिक है। इन क्षेत्रों में जांजगीर-चांापा जिले में यह उत्पादन सर्वाधिक 2.4 मि.टन है। इसी तरह से बिलासपुर जिले का (1.6) प्रति हे. उत्पादन में तृतीय स्थान है।

 सारांश में, मध्यम कृषि विकास के क्षेत्र में निरा फसली क्षेत्र, सिंचाई, द्विफसली क्षेत्र, रबी फसल, एवं प्रति हे. उत्पादन अधिक हंै। रासायनिक खाद, प्रमाणिक बीज तथा पौध संरक्षण यंत्र का उपयोग न्यून है जबकि प्रति हजार हे. निरा फसली क्षेत्र पर ट्रेक्टर का उपयोग राज्य के औसत के बराबर है।

 

3.निम्न कृषि विकास स्तर के क्षेत्र (।तमंे िस्वू स्मअमस ि।हतपबनसजनतंस क्मअमसवचउमदज)-

छत्तीसगढ़ के 6 जिले जिसमंे कृषि विकास का स्तर का संयुक्त सूचकांक 50 से 100 है। इन जिलों में राज्य के उत्तर के पांच जिले कोरिया (53.2), सरगुजा (72.5), सूरजपुर (77.7),बलरामपुर (17.2) एवं कोरबा (53.3) जिले शामिल हंै। उल्लेखनीय है कि राज्य के दक्षिण भाग में स्थित कांकेर (72.3) जिले मंे कृषि विकास का स्तर निम्न है। निम्न कृषि विकास के ये क्षेत्र उत्तर में सरगुजा उच्च भूमि के क्षेत्र एवं दक्षिण में कांकेर बेसिन है। न्यून कृषि विकास के इन क्षेत्रों में विषम धरातल, अनुपजाऊ मिट्टी ,सिंचाई एवं यातायात के साधनोे की कमी है। इन 6 जिलांे मंे कृषि विकास के घटकों का उपयोग न्यून हुआ है। निरा फसली क्षेत्र इन सभी जिलों में राज्य के औसत प्रतिशत (50.5) से कम हेै। केवल सुरजपुर जिले मंे यह अपेक्षाकृत उच्च (55.6) है। कोरबा जिले मंे यह प्रतिशत मात्र 30.4 प्रतिशत है। शेष चार जिलों में यह 30 से 40 प्रतिशत है। इन क्षेत्रों में कृषि विकास का स्तर न्यून होने का प्रमुख कारण सिंचाई सुविधाओं का विस्तार नहीं होना है। इन सभी जिलों मंे निरा फसली क्षेत्र के 10 प्रतिशत से भी कम क्षेत्र सिंचित है। मा़त्र कांकेर जिले में यह प्रतिशत 13 है जो राज्य के औसत से कम है। यही कारण है कि इन जिलों में द्विफसली क्षेत्र 10 प्रतिशत से भी कम है। मात्र सरगुजा (14.9) और बलरामपुर (16.6) जिले में यह 15 प्रतिशत से अधिक है। द्विफसली रबी की फसल है। इन जिलों में रबी की फसल 10 प्रतिशत से कम है। केवल सरगुजा (14.3) और बलरामपुर (16.3) जिलांे मंे द्विफसली क्षेत्र अधिक होने के कारण रबी फसल अन्य चार जिलों से अपेक्षाकृत अधिक है।

 

न्यून कृषि विकास के इन क्षेत्रों में प्रति हे. रासायनिक खाद का उपयोग अपेक्षाकृत न्यून है। इन जिलों में रासायनिक खाद का उपयोग प्रति हे. लगभग 16 कि.ग्रा. है। केवल कांकेर जिले में यह 30.98 कि.ग्रा. है। यह राज्य के औसत से कम है। प्रमाणिक बीजांे का उपयोग उन्नत कृषि को इंगित करता है। किन्तु इन जिलों में प्रमाणिक बीजों का उपयोग करने वाले कृषक कांकेर जिले में 0.1 प्रतिशत और कोरिया जिले मंे 1.4 प्रतिशत है। उल्लेखनीय है कि सरगुजा, सुरजपुर और बलरामपुर जिले में यह प्रतिशत राज्य के औसत (19.7) से अधिक 20.8 प्रतिशत है। पौध संरक्षण यंत्रो की संख्या, कीटनाशी दवाइयांे के उपयोग को व्यक्त करता हैं किन्तु न्यून कृषि विकास के इन जिलों में कांकेर सरगुजा, बरलरामपुर और कोरिया जिलों में यह यंत्र नहीं पाया गया हंै। कोरबा और सुरजपुर जिले में यह प्रति 1000 हे. निरा फसली क्षंेत्र पर चार है। इन क्षेत्रों में आधुनिक कृषि उपकरणों का उपयोग नगण्य है। आधुनिक कृषि उपकरण मुख्यतः ट्रेक्टर का इन जिलांे मंे प्रति 100 हे. निरा फसली क्षेत्र मंे 10 से भी कम है। उलेखनीय हैै कि इन क्षेत्रों मंे फसलों का कुल उत्पादन कम होने के साथ प्रति हे. उत्पादकता भी है। इन जिलों में प्रति हेक्टेयर उत्पादन लगभग 1.20 मि.टन है। सारांश में, इन क्षेत्रों में कृषि विकास के सभी घटकों का उपयोग न्यून हुआ है।

 थ्पहण् 1

 

4.अति न्यून कृषि विकास के क्षेत्र (।तमंे िटमतल स्वू स्मअमस ि।हतपबनसजनतंस क्मअमसवचउमदज)

अति न्यून कृषि के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ के 7 जिले शामिल हैं। इनमें संयुक्त सूचकांक 50 से कम है। ये जिले दन्तेवाड़ा (21.4), सुकमा (22.0), बीजापुर (26.8), नारायणपुर (35.7), बस्तर (42.8), जशपुर (45) एवं कोण्डागांव (50) हैं। अति न्यून कृषि विकास के ये क्षेत्र बस्तर उच्च प्रदेश के अन्तर्गत है जहाँ विषम धरातल, सघन वन, अनुपजाऊ मिट्टी, यातायात के साधन एवं सिंचाई सुविधाओ की कमी के कारण कृषि का विकास कठिन है। कृषि में केवल मोेटे आनाज ही ली जाती है। इन क्षेत्रों मंे अनुसुचित जनजाति जनसंख्या 60 प्रतिशत से भी अधिक है। यहाँ जनजातीय कृषि पाई जाती है। यहाँ की लोगांे की जीविका कृषि के अलावा अन्य कार्य जैसे वनांे से लकडी एकत्रित करना, शिकार करना, गृह उद्योग, इत्यादि भी है।

 

अति न्यून कृषि विकास के इन क्षेत्रांे मंे निरा फसली क्षेत्र 50 प्रतिशत से कम है। कोण्डागांव (35.6) और बीजापुर (28.8) जिले मंे यह और भी कम है। उल्लेखनीय है कि जशपुर जिले में निरा फसली क्षेत्र राज्य के औसत से अधिक है। कृषि विकास सिंचाई सुविधाओं पर निर्भर करता हैं। किन्तु बस्तर के पठारी प्रदेश मे सिंचाई सुविधाओं का नितान्त अभाव है। सिंचाई का प्रतिशत कोण्डागांव, बीजापुर और जशपुर जिलों में मात्र 4 प्रतिशत है। यही कारण है कि इन क्षेत्रों मे द्विफसली एवं रबी क्षेत्रों का विस्तार नहीं हो पा रहा है। द्विफसली क्षेत्र एवं रबी फसलों का क्षेत्र 5 प्रतिशत से भी कम है। केवल जशपुर जिले में द्विफसली क्षेत्र 5.7 एवं रबी फसल 5.8 प्रतिशत ळें

 

रासायनिक खाद का उपयोग चूकि सिंचाई सुविधा पर निर्भर करता है। इन क्षेत्रों में रासायनिक खाद का उपयोग बहुत ही कम है। सुकमा, नरायणपुर और दन्तेवाड़ा जिले में प्रति हे. रासायनिक खाद का उपयोग 1.86 कि.ग्रा. है। बस्तर, कोण्डागांव एवं नारायणपुर मंे यह 8.82 कि.ग्रा. है। उल्लेखनीय है कि प्रमाणिक बीजों का उपयोग अति न्यून कृषि विकास के इन क्षेत्रांे में अपेक्षाकृत अधिक है। जशपुर जिले में 12.2 प्रतिशत, बस्तर एवं कोण्डागांव जिले में 15.1 प्रतिशत एवं नारायणपुर जिले में 14.6 प्रतिशत कृषक प्रमाणिक बीजों का उपयोग करते है। किन्तु दन्तेवाड़ा एवं सुकमा जिले मंे 0.1 प्रतिशत तथा बीजापुर जिले में मात्र 2.2 प्रतिशत किसान ही प्रमाणिक बीजों का उपयोग करते है। उल्लेखनीय हैै कि पौध संरक्षण यंत्रांे की संख्या अर्थात् कीटनाशी दवाइयों का उपयोग इन क्षेत्रों के कृषक नहीं करते हैं। केवल बस्तर जिले में प्रति 1000 हे. निरा फसली क्षेत्र पर पौध संरक्षण यंत्र एक एवं कोण्डागांव जिले में 0.1है।

 

निम्न कृषि विकास के इन क्षेत्रों में प्रति 100 हे. निरा फसली क्षेत्र पर ट्रेक्टर का उपयोग 5 से कम है। केवल कोण्डागाॅव जिले मंे यह संख्या 12 है जो राज्य के औसत के बराबर है। फसलांे के उत्पादन के लिए आधारभूत सुविधाआंे के आभाव मंे बस्तर के इन पठारी क्षेत्रों में प्रति हे. उत्पादकता अति न्यून (1.0 मि. टन से कम) है। किन्तु उल्लेखनीय है कि बीजापुर जिले में प्रति हे. उत्पादन (1.37) राज्य के औसत से अधिक है। सारांश में, कृषि विकास के लिए चयनित 9 घटकों का उपयोग बस्तर के उच्च प्रदेश मंे बहुत ही कम है या नगण्य है जिसके कारण इन क्षेत्रांे मंे मोटे अनाज खरीफ फसलांे का ही उत्पादन संभव हो पाता है।

 

सहसंबंध (ब्वततमसंजपवद)रू

कृषि विकास के लिए चयनित सभी 9 घटकांे के मध्य बहुचर सहसंबंध ज्ञात किया गया है। जिससे स्पष्ट होता है कि रासायनिक खाद और प्रति 100 हे. निरा फसली क्षेत्र पर टेªक्टर की संख्या का शेष आठ घटकांे के साथ सार्थक सहसंबंध पाया गया है। जबकि प्रमाणिक बीज का सभी घटकांे (ट्रेक्टर को छोड) के साथ सार्थक सहसंबंध नहीं पाया गया है। प्रमाणिक बीजों का सिंचाई, द्विफसली, रासायनिक खाद एवं पौध संरक्षण यंत्र की संख्या के साथ सार्थक सहसंबंध पाया गया है जबकि रबी फसल, निरा फसल एवं प्रति हे. उत्पादन के साथ सहसंबंध न्यून है।

 

 

 

सारणी 2: कृषि विकास के घटकों में सहसंबंध

क्र.    कृषि विकास के घटक     1      2      3      4      5      6      7      8       9

1

2

3

4

5

6

7

8

9      निरा फसल क्षेत्र

सिंचाई

द्विफसली क्षेत्र

रबी क्षेत्र

रासायनिक खाद

प्रामाणिक बीज

पौध संरक्षण यंत्र

टेªक्टर की संख्या

प्रति हे. उत्पादन    ़ण्1ण्0      ़ण् 69

1ण्0   ़ण्77

़ण्64

1ण्0   ़ण्78

़ण्63

़ण्95

1ण्0   ़ण्67

़ण्89

़ण्59

़ण्55

1ण्0   ़ण्42

़ण्44

़ण्45

़ण्38

़ण्56

1ण्0   ़ण्54

़ण्70

़ण्59

़ण्48

़ण्74

़ण्54

1ण्0   ़ण्65

़ण्85

़ण्62

़ण्61

़ण्84

़ण्65

़ण्76

1ण्0   ़ण्52

़ण्69

़ण्55

़ण्45

़ण्59

़ण्22

़ण्42

़ण्58

1ण्0

 

 

कृषि विकास के निर्धारकों का बहुचर गुणांक (डनसजपचसम ब्वमििपबपमदज िक्मजमतउपदंजपवदए त्2) की गणना के द्वारा चारों स्वंतत्र चरों कृषक की आयु, कृषक परिवार का आकार, माध्यमिक से अधिक साक्षर कृषक का प्रतिशत एवं जोत का आकार का सम्मिलित प्रभाव ज्ञात कर उनके सापेिक्षक महत्व को स्पष्ट किया गया है। सापेक्षिक महत्व ज्ञात करने के लिए सभी आंकडों को मानकीकृत गुणांक (ैजंदकंतकप्रमक ब्वमििपबपमदज) में बदलकर प्राप्त किया गया है।

त्2 त्र 0ण्7362

ल् त्र 1ण्64म् दृ 15 0ण्2911 ग्1 0ण्3201ग्2 0ण्1094ग्3 दृ 0ण्3004ग्4

ग्1 त्र कृषक की आयु

ग्2 त्र कृषक परिवार का आकार

ग्3 त्र माध्यमिक से अधिक साक्षर कृषक का प्रतिशत

ग्4 त्र जोत का आकार

 

कृषि विकास के निर्धारकों का बहुचर गुणांक (त्2) 0.7362 स्पष्ट करता है कि कृषि विकास में 73.62 प्रतिशत भिन्नता की व्याख्या चारों कारकों द्वारा की जा सकती है। शेष 26.38 भिन्नता की व्याख्या इन कारकों से अनुत्तरित रह जाती है।

 

कृषि विकास को प्राभावित करने वाले कारक (क्मजमतउपदमदजे ि।हतपबनसजनतंस क्मअमसवचउमदज)

कृषि विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकांे को दो वर्गो मंे प्रथम बाह्य कारक एवं द्वितीय आन्तरिक कारक में वर्गीकृत किया जा सकता है। बाह्य कारक में भौतिक कारक जैसे धरातलीय संरचना, मिट्टी, जलवायु की दशाएँ जैसे तापमान, वर्षा, मौसम, एवं अन्य बाह्य कारकांे मंे यातायात के साधन, बाजार की परस्थितियाँ, आदि महत्वपूर्ण हंै। कृषि विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख आन्तरिक कारकांे में कृषि की सामाजिक एवं स्वामित्व संबंधित दशाएँ जैसे जोत का आकार भू-स्वामित्व, कृषि की तकनीकी एवं संगठनात्मक दशाएँ जैसे सिंचाई, उर्वरक, श्रम, कृषि की उत्पादन संबंधी दशाएँ एवं कृषि की संरचनात्मक दशाएँ महत्वपूर्ण हंै। आन्तरिक कारक कृषि विकास की वर्तमान अवस्था को प्रकट करते हंै।

 

प्रस्तुत अध्ययन में कृषि विकास को प्रभावित करने वाले निर्धारकों में जोत का आकार , कृषक की आयु, कृषक परिवार का आकार एवं कृषकों के शैक्षणिक स्तर को शामिल किया गया है।

 

जोत का आकार (ैप्रम िस्ंदकीवसकपदहे)-

ग्रामीण क्षेत्र में कृषि मुख्य व्यवसाय है। अतः जोत का आकार परिवार के आर्थिक स्तर का सूचक होता है। कृषि के विकास के स्तर के निर्धारण मंे जोत का आकार महत्वपूर्ण होता है। कृषिगत अथर््ाव्यवस्था में जोत के आकार के द्वारा ही सामाजिक- आर्थिक स्तर का ज्ञान होता है (राम,1979) कृषि के आधुनिक उपकरण जैसे ट्रेक्टर, थ्रेसर, डस्टर एवं हारवेस्टर का उपयोग बडे़ जोत के कृषकांे के द्वारा किया जाता है। इसका कारण छोटे जोतों की तुलना में वृहत जोतांे मंे जोखिम उठाने की क्षमता अधिक होती हंै। छत्तीसगढ़ में जोत का आकार सर्वाधिक दंतेवाड़ा जिले में 6.07 हे. और न्यूनतम जांजगीर-चांपा जिले में 0.91 हे. है। बस्तर (2.01), नारायणपुर (2.69), सुकमा (3.60), बीजापुर (0.87) और जशपुर (2.22) जिलों में भी जोत का औसत आकार 2.0 हे. से अधिक है जबकि मुंगेली (0.97) और बिलासपुर (0.95) में 1.0 हे. से भी कम है। वास्तव में प्रदेश के उत्तरी एवं दक्षिणी विषम धरातल के क्षेत्रों में जहांँ कृषि भूमि की तुलना में जनसंख्या कम है, वहांँ जोत का आकार बड़ा है। किन्तु वहाँं कृषि विकास के घटकों का उपयोग नगण्य है। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ में जोत का आकार और कृषि विकास के संयुक्त सूचकांक में ऋणात्मक सहसंबंध (-.49) पाया गया है। जोत का आकार अनेक प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक कारकों द्वारा निर्धारित होता है जोत का आकार उत्पादन को प्रभावित करता है तथा इससे सामाजिक-आर्थिक पक्ष भी प्रभावित होता है। छोटे जोत के कृषकों का भूमि से लगाव अधिक होता है जिससे गहन कृषि विकसित होती है ये कृषक भूमि का अधिकतम उपयोग करते हैं

 

कृषकांे की औसत आयु (।अमतंहम ंहम िवचमतंजपवदंस ीवसकमते)-

जनसंख्या की आयु संरचना नई विचार तथा तकनीकों के अंगीकरण को प्रभावित करने वाले कारकों में एक महत्वपूर्ण कारक है। समान्यतः कम आयु के कृषक कृषि नवाचार को अधिक और शीघ्रता से अपनाते हैं। अधिक उम्र के व्यक्ति नई चीजों को अपनाने मेें मितव्ययी होता है (मोहम्मद एवं माजिद, 1979) कृषकों की औसत आयु छत्तीसगढ़ में 50.49 वर्ष है। जोत के आकार मंे वृद्धि के साथ कृषक की औसत आयु में वृद्धि हुई है। सीमांत एवं लघु कृषक में कृषक की औसत आयु 48.45 वर्ष है और 48.84 वर्ष है जो वृहत कृषकांे में बढ़कर 51.13 वर्ष है। छत्तीसगढ़़ के जिलों में कृषकांे की औसत आयु सर्वाधिक 51.55 वर्ष कांकेर जिले में और सबसे कम 47.19 वर्ष दन्तेवाड़ा जिला में है। इसी तरह से जांजगीर चांपा (51.51), कोरबा (51.42), धमतरी (51.19) और जशपुर (51.01) जिलों में कृषक की औसत आयु 51 वर्ष से अधिक है। इसके विपरीत बीजापुर (47.70 वर्ष) और नारायणपुर जिले (47.70 वर्ष) में 48 वर्ष से कम है। छत्तीसगढ़ में कृषकों की औसत आयु और कृषि के विकास सूचकांक में धनात्मक सहसंबंध ($.48) पाया गया है। अर्थात अधिक उम्र के कृषक कृषि विकास के घटकों को अपेक्षाकृत अधिक अंगीकरण किए हैं। इसका कारण अधिक उम्र के कृषकों की आर्थिक स्थिति अच्छी अर्थात जीवन व्यवस्थित हो पाने के कारण तथा कृषि कार्य का अनुभव होने के कारण कृषि विकास के विभिन्न घटकों का उपयोग करते है।

 

कृषक परिवारों का औसत आकार (।अमतंहम ेप्रम िीवनेमीवसक िवचमतंजपवदंस ीवसकमते)-

सामान्यतः परिवार के बडे आकार में सहयोग होने के कारण श्रम शक्ति की उपलब्धता होती है जिससे कृषि कार्य में आसानी होती है। छत्तीसगढ मंे कृषक परिवारों का औसत आकार 4.5 व्यक्ति है। सामान्यतः जोत के आकार में वृद्धि के साथ परिवार के औसत आकार में वृद्वि हुई है कृषक परिवारों का औसत आकार सीमांत जोत में 5.8 व्यक्ति है जबकि वृहत जोत में यह 6.8 व्यक्ति है। कृषक परिवारों का औसत आकार रायपुर जिले मे सर्वाधिक 4.85 व्यक्ति और कबीरधाम जिले में सबसे कम 4.23 व्यक्ति है। बीजापुर (4.62 व्यक्ति ), धमतरी (4.64 व्यक्ति ) एवं दुर्ग (4.69 व्यक्ति ) जिलों में कृषक परिवार का औसत आकार 4.60 व्यक्ति से अधिक एवं बिलासपुर (4.31 व्यक्ति ) तथा जंाजगीर चांपा (4.25 व्यक्ति ) जिलों मंे यह 4.30 व्यक्ति से कम है। छत्तीसगढ़ में कषकों के परिवार का औसत आकार और कृषि विकास के संयुक्त सूचकांक में धनात्मक सहसंबंध ($.63) पाया गया है। इसका कारण परिवार में सदस्यों की संख्या अधिक होने के कारण कृषि की व्यवस्था, समय पर कार्य तथा जोखिम लेने का कार्य सभी सदस्यों पर होने के कारण सभी का आपस में एक-दूसरे को कृषि कार्य के लिए प्रोत्साहन देते है।

 

 

 

जोत के अनुसार शैक्षणिक स्तर (म्कनबंजपवदंस ेजंजने इल व्चमतंजपवदंस ीवसकमते)

कृषि विकास में कृषकों की शिक्षा महत्वपूर्ण होती है। वास्तव में कृषकांे में नवीन विचारों का प्रसरण पांच सोपानों-जानकारी (ादवूसमकहम), दिलचस्पी (प्दजमतमेज), मूल्यांकन (म्अंसनंजपवद), परीक्षण (ज्तपंस) एवं अंगीकरण (।कवचजपवद) से पूर्ण होता है। इस प्रक्रिया हेतु कृषकों में ज्ञान एवं कौशल की आवश्यकता होती है। कृषि विकास के स्तर एवं कृषकों की शिक्षा मंे सकारात्मक संबंध होता है (मोहम्मद, 1992) शिक्षित कृषक उपलब्ध संसाधनों का उत्तम उपयोग करता है वह क्षेत्र के कृषि अवस्थाओं को विकसित करता है और कृषि के भावी विकास के लिए नई दिशा देता है अतः शिक्षा फसल उत्पादन के चक्र में एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में कार्य करता है (बुनियाक,1967)

 

साक्षर व्यक्ति कृषि नवाचार को शीघ्रता से अंगीकरण करता है। परिवार के शिक्षित कृषक फार्मों पर यंत्रीकरण तथा जैव-रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग में योगदान दे सकते हैं शिक्षा सामाजिक समस्याओं को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है यह उन समस्याओं के समाधान के लिए क्षमता को बढ़ाती है शिक्षित व्यक्ति परिवार के अन्य सदस्यों को कृषि की नई तकनीकों के प्रति जागरूक करता है कई अध्ययनों में शिक्षा और कृषि विकास में धनात्मक सहसंबंध पाया गया है (क्फिटोन एवं व्हाटोन, 1966) छत्तीसगढ़ में 60.82 प्रतिशत कृषक साक्षर हैं जोत के आकार में वृद्धि के साथ साक्षर कृषक के प्रतिशत में कमी हुई है। सीमांत जोतों में साक्षरता 61.7 प्रतिशत है जो वृहत जोतों में घटकर 53.4 प्रतिशत है। किन्तु प्रदेश में माध्यमिक से अधिक साक्षर कृषक 17.5 प्रतिशत ही है। इस शैक्षणिक स्तर पर भी जोत के आकार में वृद्धि के साथ साक्षर कृषकों मंे कमी हुई हैंे। सीमांत कृषक में 16.2 प्रतिशत कृषक माध्यमिक से अधिक साक्षर है जबकि वृहत जोतों मंे यह घटकर 15.4 प्रतिशत है।

 

धमतरी जिले मंे सर्वाधिक साक्षर कृषक 80 प्रतिशत है जबकि सबसे कम साक्षर कृषक दन्तेवाडा जिले में 20.2 प्रतिशत है। दुर्ग (74.7), महासमुद (70.5), रायगढ़ (76.4) एवं रायपुर (75.2) जिलों मंे साक्षर कृषक 75 प्रतिशत से अधिक है। जबकि बीजापुर (29.1) और बस्तर (39.6) जिले मंे 40 प्रतिशत से कम कृषक साक्षर है। माध्यमिक से अधिक साक्षर कृषक सर्वाधिक दुर्ग जिले में 29.5प्रतिशत है। जबकि न्यूनतम नारायणपुर जिले में 5.8 प्रतिशत है। बिलासपुर (27.1) और रायगढ़ (25.5) जिलांे में माध्यमिक से अधिक साक्षर कृषक 25 प्रतिशत से अधिक है। इसके विपरीत दन्तेवाड़ा (6.8), बीजापुर(10.5), कबीरधाम (14.5) और बस्तर (15.7) जिलों में 15 प्रतिशत से कम कृषक माध्यमिक से अधिक साक्षर है। छत्तीसगढ़ में माध्यमिक से अधिक शिक्षित कृषक और कृषि विकास सूचकांक में धनात्मक सहसंबंध ($.51) पाया गया है। वास्तव में शिक्षित कृषक कृषि विकास के घटकों का सही समय पर उचित उपयोग के द्वारा प्रति इकाई अधिक उत्पादन ले सकता है।

 

 

निश्कर्ष-

छत्तीसगढ़ के सभी 27 जिलों में कृषि विकास के स्तर में असमानता है। छत्तीसगढ़ के मध्यवर्ती मैदानी क्षेत्र के 9 जिलों में कृषि विकास का स्तर ऊँचा हैंै। इन क्षेत्रों में निरा फसली क्षेत्र, सिंचित क्षेत्र, द्विफसली क्षेत्र एवं रबी फसलों का प्रतिशत अपेक्षाकृत अधिक है। इसके साथ ही इन क्षेत्रों में कृषि नवाचार के घटक रासायनिक खाद, प्रामाणिक बीज, कृषि के आधुनिक उपकरण एवं कीटनाशी दवाईयों का अंगीकरण अधिक हुआ है। कृषि विकास को प्रभावित करने वाले साक्षर कृषकों का प्रतिशत भी इन क्षेत्रों में अधिक है। उच्च कृषि विकास के क्षेत्र के उत्तर अर्थात् महानदी बेसिन के उत्तर में कृषि विकास का स्तर मध्यम है। इसके विपरीत प्रदेश के उत्तरी एवं दक्षिणी विषम धरातल के क्षेत्रों में कृषि विकास का स्तर न्यून है। इन क्षेत्रों में घने वन एवं अनुपजाऊ मिट्टी के कारण कृषि का विकास कठिन है। यही कारण है कि इन क्षेत्रों में निरा फसली क्षेत्र, द्विफसली क्षेत्र एवं सिंचित क्षेत्र बहुत ही कम है।

 

 

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Received on 29.06.2018                Modified on 28.08.2018

Accepted on 29.08.2018            © A&V Publications All right reserved

Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2018; 6(3):201-213.

DOI: 10.5958/2454-2687.2018.00016.3